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धूल  : स्त्री० [सं० धूलि] १. सूखी मिट्टी के वे सूक्ष्म कण जो हवा या आँधी के समय वातावरण में उड़ते रहते हैं। गर्द। रज। जैसे—लड़के धूल उड़ाते हैं। क्रि० प्र०—उड़ना। मुहा०—(किसी जगह) धूल उड़ना या बरसना=ध्वस्त या नष्ट हो जाने के कारण या चहल-पहल न रहने के कारण बहुत उदासी छाना। तबाही या बरबादी के लक्षण स्पष्ट दिखाई देना। (किसी व्यक्ति की) धूल उड़ाना=(क) किसी की त्रुटियों, दोषों, बुराइयों आदि की खूब चर्चा करके उसे परम तुच्छ ठहराना। (ख) खूब उपहास करना। दिल्लगी उड़ाना। (किसी का) धूल उड़ाते या फाँकते फिरना=दुर्दशा भोगते हूए इधर-उधर मारे-मारे फिरना। धूल की रस्सी बटना=(क) बिना किसी आधार या तत्व के कोई बड़ा काम करने का प्रयत्न करना। (ख) अनहोनी या व्यर्थ की बात के लिए परिश्रम या प्रयत्न करना। (किसी के आगे) धूल चाटना=बहुत गिड़गिड़ाकर अपनी अधीनता या दीनता प्रकट करना। (जगह-जगह की) धूल छानना=किसी काम के लिए जगह-जगह दुर्दशा भोगते हुए या मारे-मारे फिरना। (किसी की) धूल झड़ना=मारे-पीटे जाने पर भी इस प्रकार ज्यों का त्यों रहना कि मानों कुछ हुआ ही न हो। (परिहास और व्यंग्य) जैसे—अच्छा जाने दो; तुम्हारे शरीर की धूल-झड़ गई। २. किसी वस्तु पर पड़े हुए उक्त कण। जैसे—कपड़े पर बहुत धूल पड़ी है। क्रि० प्र०—पड़ना। मुहा०—धूल झाड़कर अलग य चलता होना=अपमान, आघात आदि सहकर भी उसकी उपेक्षा करना। (किसी की) धूल झाड़ना= (क) (किसी को) मारना-पीटना। (विनोद) (ख) बहुत ही तुच्छ या हीनभाव से किसी की चापलूसी और सेवा-शुश्रूषा करना। (किसी बात पर) धूल डालना=(क) उपेक्ष्य या तुच्छ समझकर जाने देना। ध्यान न देना। (ख) अनुचित और निंदनीय समझकर किसी बुरी बात की चर्चा फैलने न देना जान—बूझकर छिपाने या दबाने का प्रयत्न करना। धूल फाँकना=(क) दुर्दशा भोगते हुए व्यर्थ का प्रयत्न करना। (ख) जान-बूझकर सरासर झूठ बोलना। (अपने) सिर पर धूल डालना=कोई अनुचित काम हो जाने पर बहुत पछताना और सिर धुनना। (किसी के) सिर पर धूल डालना=बहुत ही तुच्छ या हीन समझकर उपेक्षा करना या दूर हटाना। पद—पैरों की धूल=अत्यंत तूच्छ या हीन। परम उपेक्ष्य। जैसे—वह तो आपके पैरों की धूल है। ३. मिट्टी मुहा०—धूल में मिलना=(क) पूर्णतया नष्ट हो जाना कि नाम-निशान तक न रहे। (ख) चौपट हो जाना। ४. धूल के समान तुच्छ वस्तु। जैसे—इस कपड़े के सामने वह धूल है। क्रि० प्र०—समझना।
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धूलक  : पुं० [सं०√धू (काँपना)+लक] जहर। विष।
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धूल-कूप  : पुं० [सं०] हिम-नदी के तल पर कहीं-कहीं दिखाई देनेवाले वे गहरे गड्ढे जो कड़ी धूप पड़ने से बनते हैं और जिनमें ऊपर पड़ी हुई धूल समाकर नीचे बैठ जीती है। (डस्ट वेल)
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धूल-धक्कड़  : पुं० [हिं० धूल+धक्का] १. चारों ओर उड़नेवाली घूल। २. चारों ओर मचनेवाला निंदनीय उत्पात या उपद्रव। जैसे—चुनाव के समय हर जगह एक-सा धूल-धक्कड़ दिखाई देता था।
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धूल-धान  : पुं०=धूल-धानी।
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धूल-धानी  : स्त्री० [हिं० धूल+धान ?] १. गर्द या धूल का ढेर। २. चूर-चूर करके धूल की तरह बनाने की क्रिया या भाव। ३. ध्वंस। विनाश। ४. सर्वनाश।
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धूल-यात्रा  : स्त्री०=धूलि-यात्रा।
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धूला  : [देश०] टुकड़ा। खंड। कतरा।a पुं०=धूल।a
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धूलि  : स्त्री० [सं०√धू+लि] धूल। गर्द।
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धूलि-कदंब  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का कदंब का वृक्ष और उसका फल।
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धूलिका  : स्त्री० [सं० धूलि+कन्—टाप्] १. महीन जल-कणों की झड़ी। फुहार। २. कोहरा।
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धूलि-गुच्छक  : पुं० [ष० त०] अबीर-गुलाल आदि, जो होली में एक दूसरे पर डाले जाते हैं।
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धूलि-चित्र  : पुं० [मध्य० स०] वे आकृतियाँ या कोष्ठक, जो रंगों के चूर्ण जमीन पर भुरक कर बनाये जाते हैं। साँझी। (देखें)
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धूलि-धूसर  : वि०=धूलि-धूसरित।
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धूलि-धूसरित  : वि० [तृ० त०] धूल पड़ने के कारण जिसका रंग धूसर या मटमैला हो गया हो।
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धूलि-ध्वज  : पुं० [ब० स०] वायु। हवा।
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धूलि-पुष्पिका  : स्त्री० [ब० स०, कप्—टाप्, इत्व] केतकी।
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धूलि-यात्रा  : स्त्री० [मध्य० स० ?] किसी देवता के धाम में पहुँचने पर उसके मन्दिर में जाकर किया जानेवाला वह दर्शन जो रास्ते में पैरों पर पड़ी हुई धूल बिना धोये अर्थात् सीधे मन्दिर में पहुँचकर किया जाता है। (पैदल यात्री)
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धूलिया-पीर  : पुं० [हिं० धूल+पा० पीर] एक कल्पित पीर जिसका नाम बच्चे खेलों आदि में लिया करते हैं। जैसे—तुम्हें धूलिया-पीर की कसम है, वहाँ मत जाना।
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